Wednesday, 6 May 2015

9 . ।।षट्चक्र विज्ञान।।

।।षट्चक्र विज्ञान।।

धर्मशास्त्रों में भगवत् प्राप्ति (आत्मसाक्षात्कार) हेतु जिन विभिन्न योग पद्धतियों (उपासना विधियों) का उल्लेख किया गया है उनमें से कुन्डलिनीयोग को सर्वश्रेष्ट तथा गुरूमुखगम्य माना गया है।  इस साधना का षट्चक्र साधना के साथ अटूट सम्बन्ध है। जागृत कुन्डलिनी-शक्ति सुषुम्ना विवर में स्थित इन्हीं षट्चक्रों का भेदन करती हुई सहस्रार स्थित परमशिव से मिलने जाती है।

षट्चक्रों की साधना प्रत्येक साधक के आत्मसाक्षात्कार के लिए परम वरणीय है। हमारे उपनिषदों तथा पुराणों के अतिरिक्त भवगत्पाद शंकराचार्य, आगमाचार्य पूर्णानन्दनाथ तथा जौन बुडूफ द्वारा भी षट्चक्रसाधना विषय पर सारगर्भित ग्रन्थ लिखे गए हैं। योगचूड़ामणि उपनिषद्, ध्यानबिन्दु उपनिषद्, योगशिखोपनिषद्, हंसोपनिषद्, योगकुन्डली उपनिषद्, षट्चक्र-साधना विषयक परम उत्कृष्ट ग्रन्थ हैं। पुराणों में देवीभागवत् महापुराण, लिंगपुराण तथा अग्निपुराण प्रसिद्ध हैं। श्री शंकरांचार्य की सौन्दर्यलहरी तथा श्री पूर्णानन्दनाथ केषट्चक्रनिरूपणनामक ग्रन्थ में भी इस विषय पर पूर्ण प्रकाश डाला गया है। सर जौन वूडूफ द्वारा अपने ग्रन्थसर्पेन्टपावरमें भी षट्चक्रों पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। षट्चक्र-विज्ञान को समझने के लिए उससे सम्बन्धित विभिन्न अंगों के आध्यात्मिक रहस्य को समझना आवश्यक होता है। ये अंग हैं:-

(1) मेरूदण्ड में चक्र की स्थिति (2) चक्र के कमल का रंग (3) कमलदलों की संख्या (4) दलों के वर्णाक्षर (5) चक्र के यंत्र का आकार (6) यंत्र का रंग (7) यंत्र का बीज (8) बीज का वाहन (9) यंत्र के देवी-देवता (10) यंत्र से सम्बन्धित तत्व (11) चक्र के ध्यान का फल।
प्रत्येक चक्र से सम्बन्धित विवरण दिया जा रहा है



(1) मूलाधार-चक्र
इस चक्र का स्थान लिंग और गुदा के मध्यकन्दभाग में है। चक्र का कमल रक्त वर्णी हैं इसके 4-दलों पर वं शं षं सं अक्षर हैं। चक्र के यंत्र का आकार चतुष्कोण (चतुर्भज) है। यंत्र का रंग नीला तथा बीज लं है। बीज का वाहन ऐरावत हाथी है। यंत्र के देवता तथा शक्ति ब्रह्मा और डाकिनी है। चक्र का यंत्र पृथ्वी तत्व का द्योतक है। इस चक्र के ध्यान से वाचासिद्धि, दीर्घायु तथा कार्यदक्षता प्राप्त होती है।

(2) स्वाधिष्ठान-चक्र
इस चक्र का स्थान लिंगमूल के सामने है। कमलदलों की संख्या-6 है। जिन पर बं से लं तक अक्षर हैं। इस चक्र के यंत्र का आकार अर्धचन्द्राकार है। यंत्र का रंग शुभ्र है। बीज वं है जिसका वाहन मकर है। यंत्र के देवता तथा शक्ति विष्णु और राकिनी है। यंत्र जल तत्व का घोतक है। इस चक्र के ध्यान से स्रजन एवं पालन करने की सामर्थ्य   हो जाती है। साधक में अहंकार-शून्यता के साथ ही गद्य-पद्य रचने की क्षमता उत्पन्न हो जाती है।

(3) मणिपूर-चक्र
चक्र का स्थान नाभि के पीछे है। कमलदलों की संख्या 10 है। जिन पर डं से फं तक अक्षर हैं। दलों का रंग नीला है। चक्र के यंत्र का आकार त्रिकोणात्मक है। यंत्र उगते हुए सूर्य के समान रक्तवर्णी है।  यंत्र का बीज रं है तथा वाहन मेष है। यंत्र के देवता तथा शक्ति क्रमशः रूद्र तथा लाकिनी है। यह यंत्र अग्नितत्व का घोतक है। इस चक्र के ध्यान से सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है तथा साधक में पालन एवं संहार की क्षमता उत्पन्न होती है।

(4) अनाहत-चक्र
यह चक्र हृदय के सामने स्थित है। इसके कमलदलों का रंग लाल है। कमलदलों की संख्या 12 है जिनपर कं से ठं  तक 12 अक्षर है। चक्र का यंत्र षट्कोण है तथा धूम्रवर्ण का है। यंत्र का बीज यं है जिसका वाहन मृग है। यंत्र के देवता तथा शक्ति क्रमशः ईशान तथा काकिनी है। यह यंत्र वायुतत्व का द्योतक है। इसके ध्यान से व्यक्ति सृष्टि, स्थिति तथा संहार करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है। साधक में परकाया प्रवेश करने की क्षमता तथा वृहस्पति के समान विद्वता प्राप्त हो जाती हैं।

(5) विशुद्धि-चक्र
इस चक्र की स्थिति कंठ के सामने है। कमल दलों का वर्ण धूम्र तथा संख्या 16 है जिन पर अं से अः तक अक्षर अंकित है। इस चक्र का यंत्र पूर्ण चन्द्राकार है। यंत्र का बीज हं है। जिसका वाहन हाथी है। यंत्र के देवता तथा शक्ति क्रमशः सदाशिव तथा शाकिनी हैं। यह यंत्र आकाशतत्व का द्योतक है। चक्र के ध्यान से साधक नीरोग, दीर्घजीवी, त्रिकालदर्शी तथा समस्त लोकों का कल्याण कर सकता है।

(6) आज्ञा-चक्र
यह चक्र भ्रूमध्य में स्थित है। इसके कमल दल 2 है जिनका वर्ण श्वेत है। इन दलों पर हं तथा क्षं अंकित है। इस चक्र का यंत्र अर्धनारीश्वर का लिंग (इतर लिंग) है जो विद्युत की चमक के समान प्रकाशमान है। यंत्र का बीज प्रणव है जिसका वाहन नाद हैं।  यंत्र के देवता तथा शक्ति क्रमशः अर्धनारीश्वर तथा हाकिनी हैं। यह यंत्र महतत्व का द्योतक हैं। इसके ध्यान से साधक सर्वदर्शी, सर्वज्ञ तथा परोपकारी बन जाता है तथा उसमें परकाया प्रवेश करने की क्षमता उत्पन्न हो जाती है।

(7) सहस्रार-चक्र
मेरूदण्ड के सबसे ऊपरी सिरे (स्थान) पर एक हजार कमलदलों वाला श्वेतवर्णी सहस्रारचक्र स्थित है। स्वरों तथा व्यजनों से क्ष तक (संख्या-50) को 20 बार लिखकर इसे पूर्ण किया गया है। इस चक्र में परमशिव विराजमान रहते हैं जिनसे मिलने के लिए मूलाधारस्थित कुन्डलिनी-शक्ति सदैव आतुर रहती है। मूलाधार से कुण्डलिनी का उत्थापन करके षट्चक्रों का भेदन करते हुए सहस्रार में विद्यमान परमशिव से मिलाना ही शक्ति उपासक का चरम लक्ष्य होता है। इस कमल की कर्णिका में सम्पूर्ण चन्द्रमण्डल विद्यमान रहता है, इस मण्डल के मध्य में त्रिकोण है जिसके मध्य में शून्य (बिन्दु) अवस्थित हैं। यहॉं पहुँचकर साधक को जीवात्मा तथा परमात्मा का अभेदज्ञान प्राप्त हो जाता है। यही शक्ति साधना का अन्तिम सोपान है।

उपरोक्त विवरणषट्चक्र निरूपणनामक ग्रन्थ पर आधारित है। प्राचीन ग्रन्थों में मूलाधार से सहस्रार तक के देवी-देवता क्रमशः, गणेश-सिद्धि, बुद्धि, ब्रह्मा-सरस्वती, विष्णु-लक्ष्मी, शिव-पार्वती, जीव-प्राणशक्ति तथा आज्ञा में गुरू तथा ज्ञान शक्ति है।

मेरूदण्ड में स्थित विभिन्न चक्रों के सम्बन्ध में जो विवरण दिया गया है उससे जिज्ञासु व्यक्ति के मन में सन्देह उत्पन्न होना स्वाभाविक है क्योंकि यदि मानव शरीर की चीरफाड़ तथा मेरूदण्ड की सूक्ष्म जॉंच-पड़ताल की जायेगी तो विभिन्न चक्रों के स्थानों पर कमलदल, दलों पर लिखे अक्षर तथा हाथी, मकर, भेड़ आदि पशु भी नहीं दिखाई देंगे। वास्तविकता यह है कि योग का यह विषय अत्यन्त रहस्यमय है जिसकी थाह केवल उत्कट योग-साधना से अर्जित विशुद्ध ज्ञानचक्षुओं से ही पाई जा सकती है। सामान्य व्यक्तियों के लिए जो विषय अविश्वसनीय है वही योगी-साधक के लिए योगक्षेम का कारण बन जाता है क्योंकि कुण्डलिनीशक्ति-जागरण तथा षट्चक्रों का रहस्य समझे बिना कोई भी सच्चा योगी नहीं बन सकता है।
सत्गुरूओं द्वारा बताया गया है कि षट्चक्रों के सम्बन्ध में दिया गया विवरण विभिन्न विज्ञानों यथा शरीर विज्ञान, रसायन विज्ञान, तत्वविज्ञान तथा ध्यान विज्ञान की क्रियाओं तथा प्राप्त परिणामों पर आधारित है जिनकी सत्यता पर कोई सन्देह नहीं किया जा सकता है। विभिन्न चक्रों के सम्बन्ध में कुछ कियाओं के परिणाम इस प्रकार है -

() चक्रों के कमलदल प्रतीकात्मक है - शरीर-विज्ञानी चक्रों को 'प्लेक्सस' कहते हैं। जिन भागों से विभिन्न नाड़ीपुंज निकलते हैं उन्ही स्थानों पर षट्चक्रों की स्थिति भी है। अतः षट्चक्रों के चित्रों में कमलदलों के अगले भाग से निकले हुए नाड़ी समूहों को दिखाया जाता है। कहा जा सकता है कि योगशास्त्र के कमल-दल ही शरीरशास्त्र के नाड़ीपुंज (प्लेक्सस) हैं।

() कमलदलों के विभिन्न रंग - मानवरक्त में विभिन्न तत्वों (पृथ्वीतत्व से आकाशतत्व तक) के मिश्रण से जो नया रंग उत्पन्न होता है वही रंग उस तत्वस्थान स्थित कमलदल का माना जाता है। जैसे रक्त में मिटृी मिलाने से उसका रंग मटमैला लगता है। मणिपूरक चक्र अग्नितत्व का द्योतक है। रक्त को आग में गरम करने पर उसका रंग, हल्का नीला हो जाता है। अतः इस चक्र के कमलदलों का रंग भी हल्कानीला माना गया है। इसी प्रकार अन्य चक्रों पर भी यही प्रक्रिया लागू होती है तथा वैसे ही रंगो के कमलदल भी मान लिए गए हैं।

() चक्रों के यंत्र (त्रिकोण, चतुष्कोण आदि) - विभिन्न यंत्रो के आकार उस चक्र से सम्बन्धित नाडि़यों पर वायु के आघात से बनते हैं। अर्थात प्रत्येक चक्र पर विद्यमान तत्व के स्थान पर हवा के दबाव से नाडि़यां जो आकार धारण कर लेती हैं वही आकार उस चक्र का यंत्र माना गया है। उदाहरणार्थ मणिपूरचक्र अग्नितत्व का द्योतक है। जलती हुई आग पर वायु का धक्का लाने से उसका रूप त्रिकोणाकार हो जाता है जिसका शीर्ष (मुख) ऊपर की तरफ होता है। इसी तरह अन्य चक्रों पर भी समझना चाहिए।

() बीजों का वाहन-  जिन चक्रों पर वायु की गति जिन पशुओं की गति के समान पाई जाती है उस चक्र पर उसी पशु को वाहन मान लिया गया हैं। उदाहरणार्थ मूलाधार में पृथ्वी तत्व के भार के कारण वायु की गति धीमी रहती है तो उसकी तुलना हाथी की गति से की गई है। अनाहत चक्र में वायु तत्व विद्यमान हैं। वायुतत्व में वायु की गति मिल जाने से वहॉं पर वायु की गति हिरन की तरह तीव्रता से उछाल मारती सी प्रतीत होती है।


इसी प्रकार कमलदलों के अक्षरों, यंत्रो के तत्वों तथा तत्वों के बीजों के सम्बन्ध में भी समझा जा सकता है। विस्तारभय से यहॉं पर उनका वर्णन नहीं किया गया है। षट्चक्रों का यह विषय अत्यन्त विस्तृत है जिसका सम्यक ज्ञान समुचित योगाभ्यास से ही प्राप्त हो सकता हैं। षट्चक्र एक योगी के लिएमील का पत्थर' (माइलस्टोन) की तरह होते हैं जहॉं पर पहुँचकर वह आश्वस्त हो जाता है कि उसने अबतक मंजिल की तरफ कितनी दूरी तय करली है तथा कितनी दूरी तय करनी शेष रह गई हैं। साधक का यह क्रम जन्म- जन्मान्तरों तक तब तक चलता रहता है जब तक वह सहस्रार मेंकुण्डलिनीका  ‘शिवके साथ संयोग नहीं करा देता।