Tuesday, 15 November 2016

15 ।। विभिन्न शाक्तमत एवं साधना पद्धतियां।।

15              ।। विभिन्न शाक्तमत एवं साधना पद्धतियां।।

आगम शास्त्रों में शक्ति उपासना हेतु प्रचलित विभिन्न संप्रदायों द्वारा साधक की रूचि तथा आध्यात्मिक योग्यतानुसार साधना हेतु विभिन्न सिद्धान्तों का उल्लेख किया गया है। इन उपासना विधियों में पर्याप्त भिन्नता होने के बावजूद प्रत्येक सिद्धान्त का वेदान्त की अद्वैतवादी भावना से घनिष्ट सम्बन्ध है। शिव-शक्ति का अभेद सम्बन्ध, ब्यष्टि-समष्टि का अभेद सम्बन्ध, पिन्ड-ब्रह्मान्ड का अभेद सम्बन्ध तथा उपास्य-उपासक का अभेद सम्बन्ध की प्रबल धारणा का विद्यमान होना, यह सब केवलशाक्तदर्शनमें ही दृष्टिगोचर होता है। यही भावना शक्तिउपासकों के लिए शाक्तदर्शन का अतुलनीय वरदान है।

शक्ति उपासना के विभिन्न संप्रदायों तथा उनके आचार्यों (गुरूओं) के अपने स्वतंत्र आध्यात्मिक दर्शन है। तंत्राचार्य श्री लक्ष्मीधर द्वारा शक्ति उपासकों को उनकी साधना पद्धति के अनुसार 3-श्रेणियों में विभाजित किया गया है। यथा कौलउपासक, सामयिक उपासक तथा मिश्रउपासक।

उपरोक्त तीनों संप्रदायो से सम्बन्धित तंत्र-ग्रन्थों को 3-श्रेणियों में विभाजित किया गया है। कौल संप्रदाय के प्रमुख 64-तंत्रग्रन्थ हैं। वास्तविक रूप से समस्त तांत्रिक साधना का विशद एवं व्यावहारिक विवेचन इन्हीं तंत्र-ग्रन्थों में निहित है। इन तंत्र-ग्रन्थों में पशुआचार, वीराचार, कौलाचार, सिद्धान्ताचार तथा दिव्याचार पूर्वक की जाने वाली साधनाओं का आद्योपान्त प्रकटीकरण किया गया है। जिन तंत्र-ग्रन्थों में शक्ति उपासना हेतु वैदिक मार्ग का अनुसरण करने का निर्देश दिया गया है उन्हें समयाचार-तंत्र कहा जाता है। इन ग्रन्थों को 5-संहिताओं का नाम दिया गया है। यथा वशिष्ट संहिता, शुकसंहिता, सनक संहिता, सनन्दनसंहिता तथा सनत्कुमारसंहिता।

मिश्रमतानुयायी अपनी आध्यात्मिक क्षमता एवं देश, काल तथा परिस्थितियों के अनुरूप कौलाचार एवं समयाचार दोनों में निहित पूजा पद्धतियों (पूजा के अंगों में से) में से अपनी सामर्थ्य (श्रम, समय तथा आर्थिक स्थिति) तथा अधिकार के अनुरूप पूजा के विभिन्न अंगों का अपनी उपासना पद्धति में समावेश करके साधना करते हुए आत्मसाक्षात्कार के महापथ पर अग्रसर होते हैं।

सामयिकों की उपासना के सम्बन्ध में श्री गौडपादाचार्य द्वारासुभगोदयनामक ग्रन्थ लिखा गया है। श्री शंकराचार्य द्वारासौन्दर्यलहरीनामक ग्रन्थ में श्रीविद्या तथा श्रीयंत्र के सम्बन्ध में विस्तार से लिखा गया है। श्री लक्ष्मीधर द्वाराआनन्दलहरीपर लिखी गई टीका में सामयिकों की उपासना पद्धति का विवरण इस प्रकार दिया गया है-

‘‘समयिनां मंत्रस्य पुरश्चरणं नास्ति। जपो नास्ति। बाह्यहोमोपिनास्ति।
बाह्यपूजाविधियो पि नास्ति।।
(सामयिक उपासक मंत्र का पुरश्चरण नहीं करते। जप नहीं करते। कर्मकान्ड तथा हवन भी नहीं करते। बाह्यउपचारों का प्रयोग भी नहीं करते हैं।)
स्पष्ट है कि समयमतानुयायी केवल आन्तरिक उपासना (अन्तर्याग) तक ही सीमित रह जाते हैं।

सामयिक तथा कौल-मतानुयायियों की उपासना पद्धतियों, सिद्धान्तों तथा आध्यात्मिक दर्शनों में इतना अन्तर है कि ये एक दूसरों के आचरण की निन्दा करते हैं। सामयिक सदैव कौलों की इसलिए निन्दा करते हैं कि ये केवल बाह्यपूजा, कर्मकान्ड तथा होमादि को आवश्यक समझते हैं वरन् पंचमकारों का स्थूल रूप में उपयोग करते हैं। निन्दा करते समय सामयिक यह भूल जाते हैं कि पंचमकारों के उपयोग की अनुमति केवल उच्चतम आध्यात्मिक स्तर पर पहुंच चुके साधक को ही दी गई है जो इन द्रव्यों को अपनी इष्टदेवी के चरणों में समर्पित करता है।

कौलसाधक भी सामयिकों की इसलिए निन्दा करते हें कि ये लोग समस्त साधनयुक्त घरों में बैठकर बिना किसी प्रकार का कष्ट (शारीरिक तथा मानसिक) सहते हुए किसी अकर्मण्य व्यक्ति की तरह आखें मूंदकर ध्यान के द्वारा ही आत्मदर्शन कर लेने का ढौंग रचा करते हैं।


सामयिक उपासना अत्यन्त सुविधाजनक तथा कष्टरहित है जबकि कौलमतानुयायी बीर साधक को अपने प्राण तथा शरीर को संकट में डालकर चिता, शव तथा मुन्ड साधनाऐं करनी पड़ती है तथा यह साधना श्रम, समय तथा अर्थसाध्य भी है।

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